साक्षात्कार

जनजातियों को मुख्यधारा से जोड़ने के प्रयास जारी हैं


(सुप्रसिद्ध लेखिका भूतपूर्व गोवा की राज्यपाल मृदुला सिन्हा  का जन्म 27 नवंबर, 1942, छपरा गाँव (बिहार) में माँ अनुपा देवी और पिता छबीले सिंह के यहाँ हुआ। गाँव के प्रथम शिक्षित पिता की अंतिम संतानलेखिका की यात्रा बड़ों की गोद और कंधों से उतरकर पिताजी के टमटम और रिक्शा पर सवारी, 8 वर्ष की उम्र में छात्रावासीय विद्यालय में प्रवेश। 16 वर्ष की आयु में ससुराल पहुँचकर बैलगाड़ी की यात्रा, पति डॉ. राम कृपाल सिन्हा के बिहार सरकार में मंत्री बनने पर 1971 में पहली बार हवाई जहाज की यात्रा। 1956-57 से प्रारंभ हुई लेखनी की यात्रा कभी रुकती, कभी थमती रही। शैशवावस्था में उठते-गिरते रहने के समान। 1964 से लेखन प्रारंभ। 1977 में पहली कहानी कादम्बनी पत्रिका में छपी। तबसे लेखनी भी सक्रिय हो गई। विभिन्न विधाओं में लेखकीय यात्रा निरंतर चलती रही। गाँव-गरीब की कहानियाँ हैं तो राजघराने की भी। रधिया कहानी है तो रजिया और एलिजा की भी। आपकी लेखनी ने सीता, सावित्री, मन्दोदरी के जीवन को खंगाला है, उनमें संबल ढूँढ़ा है तो जल,थल और नभ पर पाँव रख रही आज की ओजस्विनीयों की गाथायें भी चित्रित की हैं। लोक संस्कारों और लोक साहित्य में स्त्री की शक्ति-सामर्थ्य ढूँढ़ती लेखनी उनमें भारतीय संस्कृति के अथाह सूत्र पाकर धन्य-धन्य हुई है। आपकी पुस्तक ‘राज पथ से लोक पथ पर' जो विजयाराजे सिंधिया के जीवन पर आधारित है उस पर 'एक थी रानी ऐसी भी' नाम की फिल्म भी बनी। लेखिका अपनी जीवन-यात्रा पगडंडी से प्रारंभ करके आज गोवा के राजभवन में पहुँची हैं। आपका व्यक्तित्व हर महिला के लिये प्रेरणा स्त्रोत है। प्रस्तुत साक्षात्कार श्रीमती पूनम श्रीवास्तव कुदेसिया (वरिष्ठ संपादक, ककसाड़) के सहयोग से कुसुमलता सिंह (परामर्श संपादक, ककसाड़) द्वारा पूछे गये प्रश्नों पर आधारित है।


1. हिंदी साहित्य की मौजूदा हालत के बारे में आप क्या सोचती हैं?


हिंदी साहित्य में गुणवत्ता बढ़ी है और पुस्तकों की संख्या भी। यह सच है कि अंग्रेजी माध्यम से पढ़े बच्चे अंग्रेजी साहित्य ही पढ़ना चाहते हैं। इसलिये अंग्रेजी में लेखन हो रहा है अथवा हिन्दी साहित्य का अंग्रेजी में अनुवाद। बावजूद इसके हिन्दी का पठन-पाठन बढ़ा है। यह मानना कि हिन्दी साहित्य लेखन अवनति की ओर है, हमारी भ्रांति है।